Friday, February 13, 2009

~~अमृता प्रीतम~~एक दिन कवि आ गया,वह चीखकर कहने लगा ......

Dear All, something that I read yesterday in Kisi tarikh ko by Imroz...made me think aloud! You might have read it before, presenting once again..
"अंत में अमृता की अपने-आपसे हुई मुलाकात 'मैं और मैं' का आखिरी हिस्सा यहाँ जरुर दर्ज करना चाहता हूँ,जिसमें उसके व्यक्तित्व का एक खास पहलू -उसके मन की फकीरी -बड़ा उभरकर आया है|एक दर्द है की मैं सिर्फ एक शायर बन कर रह गयी-एक शायर,एक अदीब|
हजारीप्रसाद द्विवेदी के एक नाविल में एक राजकुमारी एक ऋषि-पुत्र को प्यार करती है और इस प्यार को वह छाती में जहां छिपाती है वहां किसी की दृष्टि नहीं जाती| पर एक बार उसकी सहेलियों-जैसी बहन उससे मिलने आती है,और वह इस प्यार की गंध पा जाती है|उस समय राजकुमारी उससे कहती है,"अरु!तुम कवि बन गयी हो,इसलिए सब कुछ गड़बड़ा गया...आदिकाल से तितली फूल के इर्द-गिर्द घुमती है,बेल पेड़ के गले लगती है,रात को खिलनेवाला कमल चांद की चांदनी के लिए व्याकुल होता है,बिजली बादलों से खेलती है पर यह सब कुछ सहज मन होता था,कभी कोई इनकी ओर उंगली नहीं उठाता था,न कोई इनके भेद को समझने का दावा करता था - की एक दिन कवि आ गया,वह चीखकर कहने लगा ,
"मैं इस चुप की भाषा समझता हूँ|सुनो-सुनो दुनियावालो|मैं आँखों की भाषा जनता हूँ,बांहों की बोली समझता हूँ,और जो कुछ भी लुका-छिपा है, मैं वह सब जानता हूं|". और उसी दिन से कुदरत का सारा पसारा गड़बड़ा गया...यह एक बहुत बड़ा सच है|कुछ बातें सचमुच ऐसी होती हैं,जिन्हें खामोशी की बोली नसीब होनी चाहिए....पर हम लोग,हम शायर,और अदीब उनको उस बोली में से निकालकर बाहर शोर में ले आते हैं...
जानते हो उस राजकुमारी ने फिर अपनी सखि से क्या कहा था?कहा-
"अरु!तुमने जो समझा है,उसे चुपचाप अपने पास रख लो|तुम कवि से बड़ी हो जाओ|"

मेरा यही दर्द है की मैं कवि से बड़ी नहीं हो सकी|जो भी मन की तहों में जिया,सब कागजों के हवाले कर दिया|"

~~~ किसी तारीख को में इमरोज़ ने अमृता की पुस्तक 'जंग जारी है' से प्रस्तुत किया है...मेरे ख्याल में अमृता प्रीतम के दर्द की यह इन्तेहा रही होगी~~~

मैं ही दरिया,मैं ही तूफां,मैं ही था हर मौज में.................

मैं ही दरिया,मैं ही तूफां,मैं ही था हर मौज में
में ही खुद को पी गया सदियों से प्यासा मैं ही था

{इब्राहीम अश्क}
I have been reading an amazing book on human bonding,love,hurt,sorrows,values,ambitions and that thing called as living life irrespective of the fallacies/mishaps in life- a stroy woven around four doting friends who were the cynosure of each other's life and studied together at an arts school in Paris.
The book is "Three weeks in Paris" by Brabara Taylor Bradford..amazing story teller! It's not Barbara alone, but I think it is the mere mention of Paris that fills my senses and I go weak in the knees just romancing along the Seine river side or enjoying cuppas of coffee on street side cafe`...or smelling lovely balmy wind in the gardens behind Chateaux...aah..am already there...just as Ibrahim ashk says above...."में ही खुद को पी गया सदियों से प्यासा में ही था.
Anya Sedgwick, the owner of the design institute in this fiction work is to celebrate her 85th birthday. She has ulterior motive of bringing back together the four friends who were bum-chums once upon a time but alas...were destined to part ways harshly just prior to graduation owing to misunderstandings.
 Anya....I feel, just like Ibrahim Ashk is saying..."I have been on this earth eighty-five years and I have lived every one of those years to the fullest,with energy,zest and enthusiasm. I have been involved,curious,caring,loving,interested in everything and everyone. I've never been bored or jaded,and my mind has always been active,alert,filled with optimism.She smiled inwardly...."
As I sat reading this today in my window...I thought ohh how clearly it echoes my own views for self..that for whatever number of years I live, it got to be always like this......and I smiled and softly murmured...
मैं ही दरिया,मैं ही तूफां,मैं ही था हर मौज में.................
And I know, my life will never be complete without reaching out on Eiffel Tower or enjoying the evenings along Champs-Elysees....       Aah Paris...some day I would definitely come to you to drink the nectar of thy beauty and till then would keep on repeating this by
Meer Fatah Ali:
वो सूरतें इलाही किस देस बस्तियां हैं
अब देखने को जिनके आंखें तरसतियां हैं

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