Friday, September 21, 2018

वो जो कुछ कहना है , कह ले .... मंटो !

वो जो कुछ कहना है , कह ले .... मंटो !

आज मंटो साहब से मुलाकात है अपनी ! वो जिसका अंदाज़-ए-बयान ही जुदा था - वो जो जुदा होकर भी हम सबकी , मेरी आपकी, अपनी बातें करता था ! नवाज़ को मंटो का किरदार निभाते देखना अपने आप में एक उत्सव ही होगा ! आज की शाम 'मंटो' फिल्म के नाम !
बात एक मुल्क की आज़ादी के पहले और बात की नहीं है सिर्फ़ यहाँ -- बात है जज़्बे की, बात है एक आज़ाद सोच की, बात है हर उस परतंत्रता से निज़ात पाने की जिसने आपको कस कर पकड़ रखा हो या आप खुद ही जिसकी गिरफ़्त में हों ! जब तक आप किसी और सोच , किसी और व्यक्ति, किसी और राजा के अधीन हैं या रहेंगे, आप खुद नहीं हो सकते, आप जी नहीं रहे होते ! स्पंदन तो रहता है किन्तु संवेदना नहीं ! संवेदनाओं को पराधीन कर कैसा जीना ? और पराधीनता चाहे जैसी हो, कभी सुकून नहीं देती ! हम अपने आप को छलते रहते हैं मात्र किन्तु मन के भीतर अथाह सागर भूचाल मचाता है !

ज़रूरत है इस अथाह सागर को, अपने मन को, अपनी सोच को शांति प्रदान करने की ! अपने आप से दूर भाग कर नहीं, अपने आप को समक्ष रख उन सारी बातों से, बंधनों से आज़ादी पाने की ज़िद जो हमें किसी भी तरह से बंधन में बाँधती हो ! आज़ादी से ही शांति संभव है ! मैं खुद को आज़ाद रखूँगी -- मैं आज़ाद रहूँगी !

आज विश्व भर में शांति दिवस मनाया जा रहा है -- खुद को इससे बेहतरीन तोहफ़ा नहीं हो सकता था !
मंटो फिल्म पर और भी बहुत कुछ.. देख कर आने के बाद !

मंटो !