Thursday, March 20, 2014

फ़ासले

अदावतों से बदनाम रहे 
हल्की सोचों में पले फ़ासले!

चलना था ज़रूरी, आप ही 
निभते रहे फ़ासले दर फ़ासले!

बीहड़ में भी बस जाते हैं 
झुण्डों में सिमटते फ़ासले!

परे धकेल दुनियादारी, जो बोले 
चिलमन हटाओ, थाम लो फ़ासले!

कभी दबे थे रेत में, आज 
नदी के किनारे हुए फ़ासले!

लो गिरा ही दिए तुमने-मैंने 
बुलंद रहते नहीं अक्सर, फ़ासले!

तेरे हुस्न से, न मेरे क़रार से 
मिटेंगे इश्क़ से, ये फ़ासले!

तेरा तुझसे, मेरा मुझसे भले हो,
रूह के रूह से, होते नहीं हैं फ़ासले !

रूह के रूह से, होते नहीं हैं फ़ासले !

~स्वाति-मृगी ~
२०१४ की होली

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