“पिछले बीस सालों में जब से तू मुझसे जुदा हुआ है ,
मैंने हर पहाड़ से तुझे
पुकारा ..
नदी की लहरों पे तुझे गाया ..
ज़मीन पे फूलों की नोक से तेरा नाम उकेरा
..
चिड़ियों को, तोता – मैना गोरैय्या को तेरी तस्वीर से मिलवाया ...
खिड़की से लग
के जाते सूरज को तेरी छुअन को समझाया
... रात जब चाँद सेमल के पेड़ पर अटक गया था
तो उसे तुम्हारी आँखों का वास्ता दिया ...
पिछले सालों में मैंने सिर्फ़ तुम्हें सुना ... तुम्हें बोला .. तुम्हें कहा
...तुम्हें जिया
अब मैं और चुप नहीं रह सकती ....
सुना दुनिया वालों ,
अब मैं और चुप नहीं रह सकती ....
अब मैं उससे कहने जा रही हूँ ...
हाँ समीर , अब मैं उससे कहने जा रही हूँ ... वो तुम्हें मुझसे मिलवायेगा ....
जरुर मिलवायेगा ”
शुभांगी की तस्वीर पर चंदन की माला थी ...
समीर, मोबाईल पर शुभांगी के इस अंतिम
एस एम् एस को बार बार पढ़ते हुए बस अनवरत रो रहा था ...
इस मेसेज का वो मतलब समझ नहीं पाया था ...
फिर एक बार .. समीर , शुभांगी को समझ
नहीं पाया था !
नंदिनी ने अपने पापा को सँभालते हुए कुर्सी पर बिठाया और बोली ,
"पापा ,
शुभांगी जी की खातिर , आपको चुप नहीं रहना चाहिये ... पापा , अब तो, तोड़ दो .... तोड़ दो ये प्रतिबंध !"
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मेरी आगामी कहानी 'तोड़ दो ये प्रतिबंध!' से !
~स्वाति-मृगी~
No comments:
Post a Comment