कभी जब आराम से जीवन के सफ्फाक उजियाले में बैठोगे.....
कभी जो गुजरोगे उस राह, जहाँ मंदिर में संध्या हो रही हो
कभी उस उत्ताल तरंग के मुंह से हौले से सुनो तुम नाम मेरा...
कभी जब शिखरों पे तुम्हे याद आ जाये क्षण कुछ बीते किसी नन्ही तलहटी में...
तब,उस पल,उस दिन,उस क्षण,कर देना तुम तर्पण मेरा नाम लेकर!!
कि,
तब तलक रहेंगी साथ में तुम्हारे,दुआएं मेरी...
आमीन!
४-५ मे कि मध्य-रात्री!