Monday, November 4, 2019

मैं, भविष्य सा




अंतहीन होती हैं ये ,
व्यर्थ !
प्रतीक्षारत 
बरसाती शामों का 
कोई योग नहीं होता है !

ब्रह्म कमल 
की मनुहार सा -
मेरा मन 
एक वादे पर खिलता 
दूजे पर टूट जाता है !

चिंगारी से आग, और ,
आग से चिंगारी 
शब्दों से खेलता 
कलाकार ,अक्सर 
खुदा हो जाता है ! 

एक तिलिस्म लिये ,
यादों का पीला घेरा 
जंगल में आग सा 
तिमिर,अकिंचन 
आलोकित हो जाता है !

तब मैं, 
भविष्य सा ,
अचकचाता ,
संशयित ,
स्तब्ध हो जाता हूँ !

~ स्वाति मृगी ~ 
४. ११. २०१९