Tuesday, March 3, 2009

संक्रांति फिर आ गयी. ..




This is something which i wrote on Sankranti day..14th Jan 2009. A festival so close to heart!




संक्रांति फिर आ गयी...सूर्यदेव का धनु राशिः से मकर राशिः में प्रवेश बड़ा शुभ माना जाता है क्योंकि सूर्य अब उत्तर की ओर जाता है..आने वाले छह महीनों के लिए! और इसी कारण इस दिन सूर्य की पूजा भी होती है..गायत्री मन्त्र का जाप होता है..
पुराण कहते हैं की इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाता है जो मकर राशिः का स्वामी है वैसे तो इन पिता-पुत्र के मध्य बिलकुल नहीं पटती किन्तु इस रोज़ सूर्य देव ये तय करके जाते हैं की आज शनि के घर जरुर जाना है और वह शनि के घर पूरा एक महिना वास करते हैं...ये दिवस पिता पुत्र के मध्य सामंजस्य का भी है..पुत्र को पिता के स्वप्नों/आदर्शों को पूर्ण करने का आवाहन देने वाला दिन भी...
तात्पर्य ये की मकर सक्रांति आवाहन देता है की पुराने अंधेरों से निकल कर नए उजालों की ओर बढे चलो...शुभ दिवस आये हैं...उनका आशीर्वाद ले तुम पतंग की तरह आकाश में उडे चलो...जीवन से मन से,ह्रदय से, दुष्कर्मों की,दू:विचारों की बातों रूपी पतंग को काट डालो...पुरानी कड़वी बातों को भूल (तीळ-गुळ घ्या,गोड़-गोड़ बोला) अर्थात- तिल - गुड़ खाओ और मीठा मीठा बोलो - (तिल, जो काली मिट्टी का,उपजाऊ भूमि का प्रतीक है एवं गुड़ जो जीवन में मिठास का भाव देता है/ इस वक़्त हमारे खेतों में नया तिल और गन्नों से रस निकाल नया गुड़ भी आता है..)

संक्रांति काल...क्या शहर क्या देश क्या विश्व.. इस वक़्त संक्रांति माने 'परिवर्तन' या 'ट्रांसिशन' से गुजर रहा है...अमेरिका ने इससे पूर्व पिछली सदी में दो ऐसे आर्थिक संक्रांति काल गुजारे हैं और जिसका खामियाजा बाकि के विश्व को अब तलक भुगतना पड़ा! इस दफा लेकिन चोट गहरी है..'कन्स्युमेरिज्म' की सताई अर्थ-प्रणाली, ओबामा की सरपरस्ती में नए आकाश तलाश रही है...और सभी को उनमें आकांक्षाओं का अनंत आकाश नज़र आ रहा है...ठीक सूर्य देव की तरह... की जो आकर 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' सा कुछ कर देंगे...

काश..काश की आनेवाले दिनों में सारी व्यवस्थाएं/प्रणालियाँ आदि सही हो जायें...काश की हिन्दुस्तान की सरज़मीन से भी कोई सूर्य देव रूपी ओबामा उठे और शनि प्रकोपित "सत्यम-राजू" जैसे पुत्रों को यथोचित,यथासमय ज्ञान देकर सीधा करे...देश वासियों के स्वप्नों को,छोटी छोटी इच्छाओं को पतंग सा बना कर उड़ना सिखाये...क्यूंकि...हमारे आकाओं से अब कुछ होने वाला नहीं...उनकी पतंग कट चुकी है...उनके अपने मांझे ने उनकी उंगलियाँ इस कदर छील कर लहू-लुहान कर दी हैं की उन्हें अपनी पगड़ी सँभालने में भी दिक्कत हो रही है..घर में घुस आये चूहों को पकड़ने के लिए जिस देश के सरताज सामने वाले के घर से चूहादानी उधार लेना चाहते हॉं, उनसे क्या उम्मीदें की जा सकती हैं-- राष्ट्रिय सुरक्षा की? आर्थिक सुरक्षा की? या की देश की उन्नति की सुरक्षा की? शायद किसी की भी नहीं...इसीलिए ...इसीलिए हे सूर्यदेव,आइये, आपका भारत की पावन भूमि पर स्वागत है! अपने भगीरथी प्रयास से ज्ञानियों को मेहनत का और मेहनतकशों को ज्ञान का वरदान दीजिये!

करोडों की संख्या में कल देशवासी गंगासागर पर/त्रिवेणी पर/हर की पौडी पर, आपको अर्घ्य देने आपके उदय के समय गायत्री का जाप करते खड़े होंगे...

हम सभी को इस संक्रांति काल से ख़ुशी-ख़ुशी उबार लेना प्रभु.... पुराने गिले-शिकवे कुछ हॉं तो भूल जाना प्रभु...
तीळ-गुळ घ्या,गोड़-गोड़ बोला!