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अंतहीन होती हैं ये ,
व्यर्थ !
प्रतीक्षारत
बरसाती शामों का
कोई योग नहीं होता है !
ब्रह्म कमल
की मनुहार सा -
मेरा मन
एक वादे पर खिलता
दूजे पर टूट जाता है !
चिंगारी से आग, और ,
आग से चिंगारी
शब्दों से खेलता
कलाकार ,अक्सर
खुदा हो जाता है !
एक तिलिस्म लिये ,
यादों का पीला घेरा
जंगल में आग सा
तिमिर,अकिंचन
आलोकित हो जाता है !
तब मैं,
भविष्य सा ,
अचकचाता ,
संशयित ,
स्तब्ध हो जाता हूँ !
~ स्वाति मृगी ~
४. ११. २०१९