Tuesday, August 21, 2007

मेहंदी की उम्र ...


मेरी बेटियों ने परसों

अपने नन्हे हाथों में

मेहंदी लगायी थी--

सूरजमुखी से फूल

लाल चट्टाक दिखते थे

खुश्बू से भीने

छोटे हाथों में

मैने एक चाँद सा

गीत धर दिया...

और उनसे कहा-जाओ गाओ!

वे दोनोंचहकती हुयी..

उस गीत को ले

मगन हो गयी..

लेकिन,

मेरी आँखों में सहसा

वो गीत

जवान हो गया!

बेटीयों के हाथों में रची

मेहंदी ने

मेरी ममता की उम्र को

बहुत ही बडा कर दिया!

मौत,तू किसी रोज,एक सहर की तरह आना....




मौत,


तू किसी रोज,


एक सहर की तरह आना....




मेरे जिस्म में अभी जब खून दौडता हो-


साँसों के बह्कने का


कोई अंदेशा ना हो-


मेरे लबों पर


उसके इश्क का जाम हो-


दिल में उसके ही प्यार का दर्द


और आँखों में


उसका ही तस्सवूर हो--


मौत, तू किसी रोज,


अलसायी सुबह सी आना!!




उसके आँगन जब --


नर्गिस खिलें,


आशियाना जब


जिंदगी से चहके...


उस रोज,


किसी रोज,


मौत तू --


चुपके से आना




मौत तू किसी रोज


नयी जिंदगी देने आना!!

(Photograph: Courtesy Ashutosh Soman)