मौत,
तू किसी रोज,
एक सहर की तरह आना....
मेरे जिस्म में अभी जब खून दौडता हो-
साँसों के बह्कने का
कोई अंदेशा ना हो-
मेरे लबों पर
उसके इश्क का जाम हो-
दिल में उसके ही प्यार का दर्द
और आँखों में
उसका ही तस्सवूर हो--
मौत, तू किसी रोज,
अलसायी सुबह सी आना!!
उसके आँगन जब --
नर्गिस खिलें,
आशियाना जब
जिंदगी से चहके...
उस रोज,
किसी रोज,
मौत तू --
चुपके से आना
मौत तू किसी रोज
नयी जिंदगी देने आना!!
(Photograph: Courtesy Ashutosh Soman)
1 comment:
bahut khoobsurat aur sundar likha hai............aisa kyon lagta hai
ki aap mere andar ho.....
touch wood....bahut achhi ho aap aur us se bhi achhe hain aap k andar ki bhawanayein........
bahut......bahut sara pyar
Vidya (Cheena)
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