Tuesday, August 21, 2007

मौत,तू किसी रोज,एक सहर की तरह आना....




मौत,


तू किसी रोज,


एक सहर की तरह आना....




मेरे जिस्म में अभी जब खून दौडता हो-


साँसों के बह्कने का


कोई अंदेशा ना हो-


मेरे लबों पर


उसके इश्क का जाम हो-


दिल में उसके ही प्यार का दर्द


और आँखों में


उसका ही तस्सवूर हो--


मौत, तू किसी रोज,


अलसायी सुबह सी आना!!




उसके आँगन जब --


नर्गिस खिलें,


आशियाना जब


जिंदगी से चहके...


उस रोज,


किसी रोज,


मौत तू --


चुपके से आना




मौत तू किसी रोज


नयी जिंदगी देने आना!!

(Photograph: Courtesy Ashutosh Soman)

1 comment:

Anonymous said...

bahut khoobsurat aur sundar likha hai............aisa kyon lagta hai
ki aap mere andar ho.....
touch wood....bahut achhi ho aap aur us se bhi achhe hain aap k andar ki bhawanayein........
bahut......bahut sara pyar
Vidya (Cheena)