खुदा हाफिज़, अब मुझे चलना होगा!
फिर मिलेंगे, ऐसी कोई
ज़रूरत?
भी नहीं,शायद,चाहत भी नहीं!
नज़र आती मुझे तो!
इसीलिए,
तेरे लिए!
अब मुझे चलना होगा....
तुने मुझे चाहा, मुझे पाया था--
लेकिन आगे क्या होगा, कौन?
कब/कुछ/कभी/सोच पाया था?
शायद तू सच हो और
मैं भी झूठ न होऊं
किसी जनम बैठ कर करेंगे हिसाब--
पर, अब मुझे चलना होगा
कई बार मुड़ कर
रुके थे हम
कई बार रुक कर,
नयी राह साथ मुड़े थे हम...
लेकिन अपनी राहों को अब
अपने-अपने मोड़ देना होगा!
सच मानो ,
इस दफा तो,
मुझे,अब,चलना ही होगा
मैं भीड़ में रहूँ ,या
कहीं अकेले में,
दूर ही से तुझे देख लूँगी--
तू भी मुझे चाहे तो,
हाथ भर दिखा देना!
तो ठीक है,
अब तो मुझे चलना ही होगा
'मोह नहीं बचा मुझे--
कोई लगाव नहीं अब तुझसे--'
कह कर मुझसे दामन छुड़ा लिया
सोच, गर मैंने यह तुझसे कहा होता?
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क्या तेरे पास इसका जवाब होता?
इसीलिए,
तेरे लिए!
अब मुझे चलना होगा...
अपनी अपनी राहों को अब
अपने-अपने मोड़ देना होगा!