Tuesday, September 27, 2011
ज़िन्दगी जिन्दादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं!!
आज शायद इस बात का मतलब ठीक तरीके से समझ आया है
मैं बात कर रही हूँ अमिताभ बच्चन की नयी फिल्म 'बुढ्ढा होगा... ' की! उम्र के इस मोड़ पर इस शख्स ने जिस तरह से बरसों को पीछे धकेला है , जिस ताकत, जिस शक्ति, जिस शिद्दत और जिस 'करिस्मा' से अपना किरदार दर्शकों के मन में उतारा है,बेमिसाल है! अभूतपूर्व है!
अभी पिछले कुछ दिनों से किसी एक अभीष्ट मित्र के मन में भय छाया हुआ है..मृत्यु का भय, किसी ज्योतिषी ने कह दिया था, सो उसी को पकड़कर बैठ गए हैं! ज्योतिषी के मुताबिक उनकी ज़िन्दगी के वर्ष समाप्ति की ओर हैं... मैं चाहती हूँ कि वो मित्र इस फिल्म को ज़रूर देखें... अरे, जो इंसान वास्तव में मौत के मुँह से, अकाल काल से, अपने पेशे में आये घुमावदार दुर्घटनाओं को मात देकर, फ़ायिनन्शिअल लोसेज़ से झूझकर आज इस देश के सबसे बड़े करदाताओं में से एक है, ऐसा अभिनेता, न केवल फिल्म में वरन अपने जीवन से भी हम सभी को एक आदर्श देता है! और तो और...गाता भी है... इतना खुबसूरत गाता है की बरबस आपकी आँखों में आँसू छलछला पड़ते हैं! "तुमने चाहा की मैं बदल जाऊं , कैसे बदल जाता? दिन, महिने, साल..क्या केलेंडर था जो बदल जाता...(इसी फिल्म का अमितजी पे फिल्माया गया एक संवाद)
" बेहतरीन संवादों को चाहिए बेहतरीन डेलिवेरी.....और कहना न होगा की ये नेमत तो अमित साहब को खुदा की ओर से ही आयी है ......मात्र ढाई घंटे से भी कम की इस फिल्म को देखकर इतनी जिजीविषा मिलती है ; ये बात आज कहीं फिर एक बार बड़े गहरे पैठ गयी है कि इंसान के बस में सब कुछ है..बस चाहने भर की देर है! आप किस मौत की, किस खौफ की बात करते हैं? किस उम्र के गुजर जाने की बात करते हैं? यहान देखिये, बस ज़िन्दगी ही ज़िन्दगी है चारसूं
कहना न होगा, ज़िन्दगी जिन्दादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं!!
हाल -ए -दिल
तुमसे कैसे कहूँ
यूँ कभी आके मिल
तुमसे कैसे कहूँ
यादों में
ख्वाबों में
आपकी छब में रहे
हाल -ए -दिल
हाल -ए -दिल
तुमसे कैसे कहूँ
ओह ..हम तो उधड़ से रहे
होंठ यूँ सिल से रहे
तेरे ही जुल्फों के धागे
यूँ तो सौ ख़त भी लिखे
कल्पन में रट भी लिए
तेरी कहानी दोहराते
कबसे यह ..
कह रहे ..
आपकी छब में रहे
हाल -ए -दिल
हाल -ए -दिल
तुमसे कैसे कहूँ..............
हाल -ए -दिल , तुमसे, कैसे कहूँ ??
( स्वाति ~ मृगी)
(शब्बा खैर!)
मैं बात कर रही हूँ अमिताभ बच्चन की नयी फिल्म 'बुढ्ढा होगा... ' की! उम्र के इस मोड़ पर इस शख्स ने जिस तरह से बरसों को पीछे धकेला है , जिस ताकत, जिस शक्ति, जिस शिद्दत और जिस 'करिस्मा' से अपना किरदार दर्शकों के मन में उतारा है,बेमिसाल है! अभूतपूर्व है!
अभी पिछले कुछ दिनों से किसी एक अभीष्ट मित्र के मन में भय छाया हुआ है..मृत्यु का भय, किसी ज्योतिषी ने कह दिया था, सो उसी को पकड़कर बैठ गए हैं! ज्योतिषी के मुताबिक उनकी ज़िन्दगी के वर्ष समाप्ति की ओर हैं... मैं चाहती हूँ कि वो मित्र इस फिल्म को ज़रूर देखें... अरे, जो इंसान वास्तव में मौत के मुँह से, अकाल काल से, अपने पेशे में आये घुमावदार दुर्घटनाओं को मात देकर, फ़ायिनन्शिअल लोसेज़ से झूझकर आज इस देश के सबसे बड़े करदाताओं में से एक है, ऐसा अभिनेता, न केवल फिल्म में वरन अपने जीवन से भी हम सभी को एक आदर्श देता है! और तो और...गाता भी है... इतना खुबसूरत गाता है की बरबस आपकी आँखों में आँसू छलछला पड़ते हैं! "तुमने चाहा की मैं बदल जाऊं , कैसे बदल जाता? दिन, महिने, साल..क्या केलेंडर था जो बदल जाता...(इसी फिल्म का अमितजी पे फिल्माया गया एक संवाद)
" बेहतरीन संवादों को चाहिए बेहतरीन डेलिवेरी.....और कहना न होगा की ये नेमत तो अमित साहब को खुदा की ओर से ही आयी है ......मात्र ढाई घंटे से भी कम की इस फिल्म को देखकर इतनी जिजीविषा मिलती है ; ये बात आज कहीं फिर एक बार बड़े गहरे पैठ गयी है कि इंसान के बस में सब कुछ है..बस चाहने भर की देर है! आप किस मौत की, किस खौफ की बात करते हैं? किस उम्र के गुजर जाने की बात करते हैं? यहान देखिये, बस ज़िन्दगी ही ज़िन्दगी है चारसूं
कहना न होगा, ज़िन्दगी जिन्दादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं!!
चलते चलते, आप सभी के लिए, इस फिल्म का खुबसूरत गीत जो खुद अमिताभ साहब ने गया है...सुनियेगा ज़रूर!
हाल -ए -दिल
हाल -ए -दिल
तुमसे कैसे कहूँ
यूँ कभी आके मिल
तुमसे कैसे कहूँ
यादों में
ख्वाबों में
आपकी छब में रहे
हाल -ए -दिल
हाल -ए -दिल
तुमसे कैसे कहूँ
ओह ..हम तो उधड़ से रहे
होंठ यूँ सिल से रहे
तेरे ही जुल्फों के धागे
यूँ तो सौ ख़त भी लिखे
कल्पन में रट भी लिए
तेरी कहानी दोहराते
कबसे यह ..
कह रहे ..
आपकी छब में रहे
हाल -ए -दिल
हाल -ए -दिल
तुमसे कैसे कहूँ..............
हाल -ए -दिल , तुमसे, कैसे कहूँ ??
( स्वाति ~ मृगी)
(शब्बा खैर!)
लौट आती हूँ अक्सर...
लौट आती हूँ अक्सर
कि उकता जाती हूँ मैं-
फिर उन्हीं शब्दों के इस्तेमाल से !
बेवजह के झूठ अब स्फटिक से दिखाई दे जाते हैं
एहसासों के दरीचे तले
रौंधे जाते हैं
अनगिनत चाहतों के सिलसिले
और फिर भी तुम कहते हो,
बहार आयी है?
मैं,
बस इक मौन--
जूही की बेल में घोंसला बनाती
मैना को
आते जाते देखती हूँ !
कितनी हर्षित है उसकी हर उड़ान
फिर, अपनी हाथों पर खींची
आडी तिरछी लकीरों को देख ,
लौट आती हूँ अक्सर
कि उकता जाती हूँ मैं
नाकाम ही सही,
इक कोशिश तो थी !
सधे हुए कदमों में ,
इक जुम्बिश तो थी!
पर अब,
लाचार पंखों में परवाज़ देख --
लौट आती हूँ अक्सर ,
कि उकता जाती हूँ मैं!
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