Monday, December 26, 2011

तर्पण- II

कभी याद आता है

मेरे कहने पे

तुमने

ज़िन्दगी में पहली दफा

चाय के घूँट भरे थे...



कॉफ़ी का मग,

परे सरका कर!

फिर

कभी ये भी की

मेरे कहने पे

तुमने

ज़िन्दगी में पहली दफा

ज़हर पीकर दिखाया था...

सच्चे होने के बावजूद!

और हाँ,

वो

सोडा निम्बू पानी...

जिसकी बोतलों से तुम्हे सख्त नफरत थी...

फिर भी गुटक जाते थे



एक इशारे पे-

एक झटके में!

अब सुनती हूँ

न तो तुम

चाय पीते हो

न कॉफ़ी

न निम्बू पानी...

न ज़हर

अब तो हर दफा,


पीते हो सिर्फ--

प्रायश्चित के आँसू!



~~ स्वाति मृगी~~

३- ४ नवम्बर, २०११ ( मध्य रात्रि)

समाधिस्थ!

मौन


प्रेम

मौन

रुदन

मौन

क्रंदन

मौन

निंदन

मौन

ज़िन्दगी

मौन

ही बस

इस दिल की तडपन

यही बेहतर है

कि, मैं अब मौन ही रहूँ--

समाधिस्थ!



~~स्वाति मृगी~~

४ नवम्बर २०११