कभी याद आता है
मेरे कहने पे
तुमने
कॉफ़ी का मग,
परे सरका कर!
कभी ये भी की
मेरे कहने पे
तुमने
ज़िन्दगी में पहली दफा
ज़हर पीकर दिखाया था...
सच्चे होने के बावजूद!
और हाँ,
वो
सोडा निम्बू पानी...
जिसकी बोतलों से तुम्हे सख्त नफरत थी...
फिर भी गुटक जाते थे
एक इशारे पे-
एक झटके में!
अब सुनती हूँ
न तो तुम
चाय पीते हो
न कॉफ़ी
न ज़हर
अब तो हर दफा,
पीते हो सिर्फ--
प्रायश्चित के आँसू!
~~ स्वाति मृगी~~
३- ४ नवम्बर, २०११ ( मध्य रात्रि)
1 comment:
पीते हो सिर्फ--
प्रायश्चित के आँसू!
प्रायश्चित के आँसू स्वर्ग से उतरा हुआ दैवी झरना होता है, जिसे आपने बहुत सुंदर ढ़ंग से पेश किया है..!
बहुत बढ़िया..! धन्यवाद।
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