Tuesday, October 2, 2012

और मैं भी, आज स्वतंत्र हो गयी...


मैं मरने वाला हूँ...  अगस्त २०११ अंतिम तिथि है मेरे जीवित बचे रहने कीशब्बो, मुझे भूल जाना तुम..वो सारी कसमें, वो सारे वादे जो हमारे बीच हुए  थे..सोच लेना की एक फरेब थे! हमने पिछले सालों में जो प्यार अनुभव किया, शायद मैं उसे अंजाम तक ले जा पाउँगा..तुमसे निकाह का वादा जरुर किया था, लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं हो पायेगा..मुझे भूल जाना शब्बो! शब्बो, मैं जानता हूँ की तुम जी पाओगी  मेरे बिना मैं..लेकिन कम से कम इस एक साल में तुम्हे आदत पड़ जाएगी मेरे बिना जीने की!! अगले साल इस वक़्त तक जब तुम्हें  मेरे मरने की खबर आएगी, तुम जहाँ कहीं हो, वहाँ दो चार फूल किसी पीर की मज़ार पर मेरे नाम से चढ़ा आना! मेरी रूह को सुकून मिल जाएगा! “

वसीम, अल्लाह के लिए ये तो बताओ की मेरा कुसूर  क्या है? ऐसा क्या गुनाह हो गया मुझसे? क्या ख़ता कर दी मैंने की जिसकी इतनी बड़ी सजा देते हो मुझे तुम? किसने कह दिया तुमसे की तुम अगले साल मरने वाले हो? कुछ नहीं होगा तुम्हें..कभी कुछ नहीं हो सकता..तुम पर आती बलाएं मैं अपने नाम  कर लूँगी..मुझसे कहो, क्या तकलीफ है तुम्हे? मैं तुम्हे बड़े से बड़े डॉक्टर, हाकिम, बैद को दिखाऊँगी मैं जाऊँगी मस्जिद, मंदिर, गिरजा, गुरद्वारे..हर जगह मन्नत माँगूंगी! कहूँगी परवरदिगार से की जब दो दिलों को मिलाया है तो उन्हें हमेशा के लिए एक साथ रहने क्यूँ नहीं देता?”

नहीं शब्बो, मेरे जन्म के साथ ही मेरे मौत की तारीख़ तय हो कर आयी थी! मेरे अब्बा जान ने भी कई साल पहले मुझे ये बात बतायी थी..मैं शायद इन बातों को ना मानता लेकिन जाने क्यों, इक अजीब सी कश्म कश हमेशा दिल को घेरे रहती है...अब मैं नहीं ज़िन्दा रहूँगा..मुझे चले जाना चाहिए..मेरे बिना तुम जीना सीख लोगी शब्बो….मैंने बहुत नामी गिरामी आदमी को फिर एक बार अपना हाथ दिखाया है..उसने कहा अब कुछ नहीं हो सकता...”

वसीम, तुम कैसे इन सब बातों में...”

शब्बो, मैं जानता हूँ तुम यही कहोगी की मैं इतना बड़ा अफसर होकर कैसे इन बातों को इतनी तवज्जो दे रहा हूँ..लेकिन मुझे ही नहीं पता की मेरे संग ये सब क्या हो रहा है..मुझे अब किसी से बातें करने को मन नहीं करता..मैंने अपना फ़ोन भी इसी वजह से  बंद रखा हुआ है..तुमसे भी बात नहीं करता हूँ..चाहता हूँ की मेरे बाद मेरे प्रति किसी का कोई मोह बचे..शब्बो, ये मेरी तुमसे आखरी दरख्वास्त है..की मुझे भूल जाना..आज ऑगस्ट २०१०  है..आज से ठीक एक साल बाद जब मैं नहीं रहूँगा..शायद मेरे घर के लोग तुम तक कोई खबर भी पहुँचाये..तब तुम मेरे नाम से...”

शबनम के हाथ को ज़ोर ज़ोर से हिलाते हुए अचानक एक नन्हे ने कहा टीचर, टीचर, कहाँ खो गयी आप? देखिये , अच्छी तस्वीर है , हमारे परिवार की? ये हमारे पापा हैं, कर्नल वसीम सईद  , ये हमारी मम्मा हैं, और ये छुटकी मेरी बहना, निक्की,बस एक साल  की है....हमारे पापा की पोस्टिंग भुज में हुई थी , तब हम सब यहीं अहमदाबाद में रहते थे! अब्बा ने हम सभी को पिछली क्रिसमस में वहाँ खूब घुमाया था.. हम सब वहाँ कुछ दिनों के लिए गए थे! ये तस्वीर तब की है! शबनम टीचर, आप भी तो वहीं रहती थी ? आपने वहीं से पढाई की है ? बोलिए टीचर? आपको मेरा प्रोजेक्ट कैसा लगा?”

मास्टर समीर सईद, आपकी परिवार की तस्वीर बहुत अच्छी है, आपका लिखा हुआ फॅमिली प्रोजेक्ट भी बहुत अच्छा है.....बस इस पर आज की तारीख डाल देना बेटा, १५ अगस्त २०१२!”
और फिर शबनम ने आँखों में झिलमिलाते आँसुओं को आँखों में भरते हुए कहा...  “बेटा समीर, १५ ऑगस्ट का क्या महत्त्व है?
टीचर जी, आप भूल गयीहम सब आज के रोज़ गुलामी से स्वतंत्र हुए थे!”

हाँ बेटा!और मैं भी, आज स्वतंत्र हो गयी.... अपने ही दिल की गुलामी से!”
ये कहते हुए शबनम बच्चों में मिठाई बाँटने चली गयी ….


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