आँखों में तू बस गया जबसे
ना जाने क्यूँ
समंदर सारा बह गया--
तेरी प्यास से, जिसने मन का
हर कोना भिगो दिया...
एक बादल क्यों पर
कहीं और जा बरस गया?
बारिशों में भी जो मुझे रीता कर गया,
बस एक अश-आर था जो जुदा हो गया...
उस सावन में भीगा था संग जो,
आज बिन आवाज़ का आँसू हो गया!
मौन रूदन सी बूँदें गिरती हैं इस बारिश को सुनो तुम..
जो गूँजती ह्र्दय में उनका नाम भी ना सुनो तुम..
कहीं बादल के गरजने से उठती हैं आहें
याद फिर आयी हैं
तेरी घुंघरुओं सी वो बातें
वो सावन ना मुझसे भूला गया
झुलाया था जब तुझको झूला
वो आमों के सूने पेड अब मुझे रूलाते हैं...
बस एक अश-आर था जो जुदा हो गया...
उस सावन में भीगा था संग जो,
आज बिन आवाज़ का आँसू हो गया!
अबके सावन ना जाने क्यों छल गया
बूँदों में पिरोया प्रीत का पहला गीत सा
तेरा छूआ हर लफ्ज़ याद मुझे आ गया
भीगे बालों में वो उंगलियाँ फिराना....
आह प्रिय वो तेरे
होठों से छूकर जो बह जाती थीं..
उन बूँदों को निहारना याद मुझे आ गया
बस एक अश-आर था जो जुदा हो गया...
उस सावन में भीगा था संग जो,
आज बिन आवाज़ का आँसू हो गया!
आज बिन आवाज़ का आँसू हो गया!
4 comments:
बिना आवाज के सभी किस्से कह दिये शव्दो नें, सुन्दर, अति सुन्दर भाव ।
धन्यवाद
'आरंभ' छत्तीसगढ का स्पंदन
सुंदर अभिव्यक्ति!!
उस सावन में भीगा था संग जो,
आज बिन आवाज़ का आँसू हो गया!
Too touchy to express...Beautiful lines.
अबके सावन ना जाने क्यों छल गया
बूँदों में पिरोया प्रीत का पहला गीत सा
तेरा छूआ हर लफ्ज़ याद मुझे आ गया
भीगे बालों में वो उंगलियाँ फिराना....
आह प्रिय वो तेरे
होठों से छूकर जो बह जाती थीं..
उन बूँदों को निहारना याद मुझे आ गया
.........। बहुत ही सुंदर सृजन स्वाति जी..। और जीवन के हर पहलू की ही तरह इस सृजन की जान..। इस सृजन का खुशनुमा एहसास..। अति सुंदर..।
सुरेन्द्र
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