Wednesday, January 16, 2008

इक सजन है सलोना सा.......


इक सजन है सलोना सा...
दिल को है मेरे भाया जो!
कहता है मुझसे,कुछ कहूँ
दास्ताने-दिल....
सोचती हूँ,रुसवा
ना हो जाये कहीं वो!

हंसता है तो
बारिशों की बूँदों से
हरसिंगार खिल जाते हैं
बतियाँ जैसे--
मिसरी घुली जाती है,सीने में
इक बलम है प्यारा सा वो
इक सजन है सलोना सा वो

होठों से उसके रंग चुरा के
मैं इन आँखों में भर लेती हूँ
हर सुबह,फिर,
ले नूर उन आँखों से,
अपने होठों पे सजा लेती हूँ...
जज्ब है वो मुझमें इस तरह से
इक सजन है शर्मिला सा वो
इक बलम है प्यारा सा वो

दूर वादियों में
जब मंदिर में संध्या होती है
मेरे ह्र्दय में
जैसे बंसी
राग कोई छेडती है
जैसे उसी प्रभु का
अवतार है वो...
इक श्याम है प्यारा सा वो

इक सखा है अलबेला सा वो
इक बलम है न्यारा सा वो
इक सजन है सलोना सा वो

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