Saturday, October 1, 2011

अस्तित्व को मेरे.....

भीड़ में चलना

स्वीकारा नहीं मैंने कभी




भीड़ में तो भेड़ चलती है,

माँ तुमने जीवन का गुरु मन्त्र दिया!



छू लूं मैं जिस जीवन को,

वो 'स्वर्ण' हो जाये!

बाबा ~

तुमने कैसा परस मणि हाथों में दे दिया!



अस्तित्व को मेरे

हर अपने बेगाने ने सराहा

पूरा जब भी करना चाहा,

वक़्त, बाज़ीगर-सा, ठुकरा के चल दिया!



आज तुम नहीं हो,

माँ-बाबा,

तुम्हारी सीख संग है

स्वर्ण और परस मणि का सत्य संग है,

मेरे इन दो नैनों में जिजीविषा संग है,

कि

अस्तित्व को मेरे,

तुम्हारे आशिर्वाद ने पूरा कर दिया!



~ स्वाति- मृगी~

१-अक्टूबर-२०११

शाम ७.३० बजे

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