Thursday, March 20, 2014

उम्र का अनगढ़ हिस्सा तो नहीं था!

उम्मीद के चश्मे पहन,
किरमिजी धूप के छिलकों में 
परत दर परत
खुलता गया –
बीता, जो,
वो सिर्फ एक साल नहीं था!

उलझी बहसों को
और उलझाता ,
गुज़रा हम पे वो
अमिट सी लिए छाप
अनुभूति का
और एक नया
सिलसिला सिर्फ नहीं था !

बहकाया, तडपाया,
फिर बहकाया --
जिसने !
‘मृगी’ के ह्रदय को
तनहा कर गया ~
फफक कर हँसा और रुला भी गया,
पगला सा कोई ख़्वाब,
और पगला कर गया ,
उम्र का अनगढ़ हिस्सा तो नहीं था!

~स्वाति- मृगी ~
३०/१२/२०१३


(पेंटिंग साभार : क्रिस्सी , यू एस )

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