Sunday, April 20, 2008

प्रेम-उजियाला !!


विछोह-कल्पना


कल्पना असहनीय


सहना कठिन


कठिनता जटिल


जटिलता सामाजिक


सामाजिक बंधन


बंधे हुए हम-तुम


हम-तुम साथी


साथी सहारे


सहारे ढूंढते


ढूंढते प्यार


प्यार आत्मिक


आत्मा है निर्मल


निर्मल नाते


नाते अर्धसाकार


अर्धसाकार स्वप्न


स्वप्न मोहक


मोहित धारित्री


धारित्री वरुण की


वरुण घनघोर


घनघोर छाया अँधेरा


अंधियारी राहें


राह-मानवता-पवित्रता-प्रेम


प्रेम-उजियाला सर्वोपरि


सर्वोपरि प्रेम-उजियाला!

किसी दौर वो संग चला था..

अक्सर गिर जाता है पत्ता राह गुजर पे

शाखों से फिर कहाँ वास्ता रख पाता है?

गमों को वो किस कदर छुपाता होगा

दोस्त , जो किसी राह पे मुड़ जाता है?

किसी दौर वो संग चला था मेरे कभी,

सोच के ये कहाँ ,हमनवा बन पाता है?

मेरा माज़ी भी कम्बख़्त, खुदा-सा,

मुझे आज भी जीना सीखा जाता है!

~स्वाति~२० एप्रिल २००८

सुनहले रंग सजाती हूँ!

जिंदगी ने कई रंग दिखाए, फिर भी,
अब नया रंग ढूँढती हूँ
अपने आकाश पे इन दिनों
सुनहले रंग सजाती हूँ!

जीने की चाह तो मुझमे भी है,फिर भी,
सिर्फ़ तेरी चाहत का दम भरती हूँ
ख्वाब मे ही मिल जाया कर
ये ही दुआ करती हूँ!

जिंदगी से कोई शिकायत नही, फिर भी,
खुशियों के बहाने ढूँढती हूँ,
रोज़ सुबह बेटियों को देखकर,
जीने का सामान करती हूँ!!
~~स्वाति ~~१७ अप्रिल,२००८ ~ १.१४ मध्य रात्रि

और तुम आओ!! (कुछ हल्का-फुल्का....)

ऐसा नहीं हो सकता क्या, कि,
दिन के उजालों में, शहर सारा सोता हो,
और तुम आओ!

किसी कुत्ते के बच्चे की पूँछ हिले,
और तुम आओ!

आईसक्रीम का आखिरी स्कूप हो हाथ में
और तुम आओ!

मेरे वो पुराने वाले दिनों की दस्तक हो,
और तुम आओ!

मेरे जन्मदिन का पहला लम्हा हो,
और तुम आओ!

मेरे हाथों में नौ-नौ चूडियाँ हो,
और तुम आओ!

रात अभी आधी हो,
और तुम आओ!

मेरी साँसें मुझसे खफा-खफा हो,
और तुम आओ!

क्या जानू कि क्या कुछ होना हो,
जब तुम आओ!!

तुम्हारे लिये...(तुम जानते हो!!)

तिमिर का सन्नाटा कह रहा था

जो बरसेगा वो बादल कैसा होगा?

मेरे अरमानों में बस गया

एक मासूम सा चेहरा

छू लूँ गर उसे तो

वो उन्माद कैसा होगा?

इक चिडिया ने कल कहा था मुझसे..

ना उदास रहा करो ऐसे,

लो, मेरे पंख ले लो तुम!

अब सोचती हूँ उसके शहर का

आसमान कैसा होगा?

डूबते अँधियारे से अक्सर्,

ध्रूवतारा पूछा करता है हर रोज़,

तेरे आँचल को तलाश है जिसकी

वो उजियारे वाल सूरज़, जाने कैसा होगा?

तिमिर का सन्नाटा कह रहा था

जो बरसेगा इस बरस तो,

वो बादल कैसा होगा?