Sunday, April 20, 2008

सुनहले रंग सजाती हूँ!

जिंदगी ने कई रंग दिखाए, फिर भी,
अब नया रंग ढूँढती हूँ
अपने आकाश पे इन दिनों
सुनहले रंग सजाती हूँ!

जीने की चाह तो मुझमे भी है,फिर भी,
सिर्फ़ तेरी चाहत का दम भरती हूँ
ख्वाब मे ही मिल जाया कर
ये ही दुआ करती हूँ!

जिंदगी से कोई शिकायत नही, फिर भी,
खुशियों के बहाने ढूँढती हूँ,
रोज़ सुबह बेटियों को देखकर,
जीने का सामान करती हूँ!!
~~स्वाति ~~१७ अप्रिल,२००८ ~ १.१४ मध्य रात्रि

2 comments:

said...

ये लोग कविता कैसे लिख लेते हैं ? :)

Dr Swati Pande Nalawade said...

Bas likh lete hain Saurabh ji!