Friday, October 5, 2007

और याद तुम्हारी उभरेगी...


आज फिर सागर किनारे डूबेगा सूर्य

और याद तुम्हारी उभरेगी

इस दिल के किनारों पर

इन अंतिम चमकीली किरणों में

शायद तुम्हें दिखायी दे

मेरा अक्स

क्योंकि स्नेह और गर्माहट का

बहुत पुराना रिश्ता है

स्नेहांकित जल ने सदैव ली है

उष्मा सूर्य की..औ

सूर्य की तपिश को

जल से ज्यादा किसने जाना है?

और यही सत्य है हमारे रिश्ते का भी

स्नेह और गर्माहट का

आज फिर सागर किनारे डूबेगा सूर्य

और याद तुम्हारी उभरेगी

इस दिल के किनारों पर..

5 comments:

डाॅ रामजी गिरि said...

"उष्मा सूर्य की..औ
सूर्य की तपिश को
जल से ज्यादा किसने जाना है?"

कृष्ण के प्रेम-रस को तो राधा के मन ने ही जाना है..
बाकी दुनिया के लिए तो वहा लीला थी.

renu agarwal said...

bahut aaccha likhti hain aap !

Dr Swati Pande Nalawade said...

Dhanyavaad Renuji! Aapki isi hausla aafzaii ki jarurat hai!

..मस्तो... said...

इसकी ख़ासियत इसकी भाषा है...
और यही इसकी ख़ामी भी...

हाँ सच बहुत प्यारा लिखा है.. आपने ..पर अगर
थोड़ा आसान शब्द होते तो कविता का स्वाद और निखर के आता...

एसा मुझे लगता है.

Love..मस्तो

Dr Swati Pande Nalawade said...

Thanks gaurav,
Shabdon se khelna pasand hai...ye kavita 1996 me likhi hai shayad.

Chand-badhdh to main likhti hi nahi...alankaaron se bhi ye saji nahi hai...haan prateekatmakta jarur bahut milegi aapko meri sabhi rachnaaon mein!

Fir bhi, aapka abhaar ki aapne yahaan akar is kavita ko padha aur apne vichaar rakhe!

saadar s-sneh!