"हे गार्गी, कहाँ ध्यान है तेरा, हाथ सीधा रख..मेहंदी ख़राब हो रही है! ", सुचेता ने अपनी छोटी बहन को डपटते हुए कहा| गार्गी कल ही शाम को अपने हॉस्टल से, दून से मेरठ , अपने घर वापस आयी थी| राखी का त्यौहार है तो सभी बच्चे जो उत्तर भारत से थे, अपने अपने घर, दिल्ली या आसपास के शहरों में वापस गए थे | गार्गी का मन तो न था लेकिन निशित, उसके बड़े भाई के जोर देने पर आना पड़ा था|
गार्गी को याद आया, जब माँ थी तो राखी के ५-६ दिन पहले से ही घर में उत्साह उमंग का माहौल तैर जाता था..कितनी मिठाइयाँ, नमकीन, मठरी सेंव और जाने क्या क्या बनते थे| वो और मम्मा जाकर खान मार्केट के अपने फेवरेट दुकान से सुन्दर सी ड्रेस खरीदते थे, भाई के लिए नयी शर्ट और गार्गी को उसकी पसंद की आरटीफीशियल जेवेलरी भी मिलती थी! मेहंदी लगवाने हमेशा बाबा खडकसिंह मार्ग पर गुरद्वारे के पास हनुमान मंदिर पर ही जाते थे...मम्मा कहती थी , "मैं चाहती हूँ की मेरी गार्गी की मेहंदी सबसे सुन्दर हो, इसलिए मैं तुझ पर एक्सपेरिमेंट नहीं करना चाहती|"
गार्गी मन ही मन मुस्कुरा उठी और सोचने लगी, जिस मम्मा को मेहंदी में एक्सपेरिमेंट करना पसंद नहीं था, वो मेरे लिए ढेरों एक्सपेरिमेंट छोड़ गयी है...
पाँच साल पहले गार्गी की मम्मा, नीरू को डॉक्टर्स ने बता दिया था की अब उसके पास ज्यादा से ज्यादा ७-८ महीने का समय है| गार्गी तब सात साल की और निशित, उसका बड़ा भाई दस साल के थे| अच्छी भली, हँसती खेलती नीरू को जब अचानक ही ये पता पड़ा तो उसके और उसके पति संजय के पैरों तले से ज़मीन खिसक गयी थी| किडनी फेलिअर का ऐसा केस जिस पर लाखों रूपया खर्च कर के भी नीरू को कितने दिन/महीने/साल की ज़िन्दगी और मिलेगी, कोई नहीं बता सकता था| नीरू ने एक-दो हफ़्तों तक बहुत सोचा और फिर संजय से कहा, "मेरी दवाएं और डायलिसिस तो शुरू ही है, उसका खर्चा तो है ही...तुम मेरी बीमारी पर और खर्चा मत करो अब! जो भी पैसा है वो बच्चों के भविष्य के लिए रखना| मैं हमारे पैसे को किसी एक्सपेरिमेंट में बर्बाद नही करना चाहती!"
नीरू के पिता की काफी बड़ी फेक्ट्री थी| उसके भाई की दो साल पूर्व ही एक एक्सीडेंट में मौत हो गयी थी और पिता उस सदमे में चल बसे थे| अब बस नीरू की माँ ही थी| नीरू ने तब बच्चों के संग और ज्यादा वक़्त गुज़ारना शुरू कर दिया| नौकरी से इस्तीफा तो वो उसी वक़्त दे चुकी थी जब उसे दो साल पहले डायलिसिस शुरू करना पड़ा था| अब वो दोनों बच्चों को ढेरों जगह घुमाने ले जाती, उनसे खूब बातें करती, उनके दोस्तों को घर बुलाती , उनकी सारी होब्बिज़ पूरी करती| गार्गी को स्विमिंग करना बहुत पसंद था लेकिन उसे बहुत दर लगता था| वो बार बार नीरू से कहती, " मम्मा, आप जबसे मेरे साथ स्विमिंग करने नहीं जाती हो, मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता..." सुनकर नीरू ने तय कर लिया की चाहे डॉक्टर मना करे, इन्फेक्शन के चांस बढे, वो स्विमिंग जरुर करेगी| और जिस रोज़ तक नीरू को अस्पताल नहीं ले जाया गया, उसने गार्गी संग स्विमिंग करना बंद नहीं किया| गार्गी सोचती थी, "ये ऐसा एक्सपेरिमेंट था जो उसने जान बूझ कर किया..इसके पीछे के रिस्क को समझती थी और फिर भी किया..."
पूरे ७-८ महीने तक नीरू ने गार्गी और निशित के मन की तैयारी कर दी थी..वो उन्होंने समझाती, सहलाती, और बताती.."बेटा, मैं हमेशा तुम दोनों के संग रहूँगी! कभी तुमसे दूर नहीं जाऊँगी| ये तो भगवान् जी को कोई जरुरी काम आ गया है इसलिए तुम्हारी मम्मा को बुला रहे हैं जल्दी| तुम्हे जीवन में आगे जाकर जो भी बनना हो, तुम्हारा जो भी सपना हो, उसे पूरा करना..मैंने तुम्हारे पापा को अच्छेसे समझा दिया है..तुम्हे कभी कोई तकलीफ नहीं होगी| " गार्गी तो खैर छोटी थी, हर बात पर सर डुला देती लेकिन निशित तो बड़ा था, समझता था...माँ के मुंह से ऐसी बातें सुनकर घर से बाहर जाकर घंटों पेड़ के नीचे बैठा रोता रहता|
फिर वो दिन भी आया जब नीरू को एम्बुलैंस में दाल के अस्पताल में भर्ती करना पड़ा..गार्गी और निशित ने माँ को हाथ हिलाकर विदा किया..नीरू ने उन दोनों के सर पे प्रेम से हाथ फेरा,उन्हें चूमा..और वही चिर परिचित मुस्कान से उन्हें टाटा करते हुए कहा, "बच्चों, मेरे एक्सपेरिमेंट ख़त्म हुए, अब तुम्हारे एक्सपेरिमेंट्स की बारी है!"
नीरू के जाने के पांच-छह माह बाद ही संजय को घरवालों की जबरदस्ती के आगे हाँ कहना पड़ा था| उसने सुन्दर दिखने वाली, गौर वर्णा माधुरी से विवाह कर लिया था| माधुरी उच्च वर्गीय परिवार की, तलाकशुदा स्त्री थी और उसे पंद्रह साल की बिटिया थी, सुचेता! बहुत अजीब लगा था गार्गी को ये सब..निशित सिर्फ रात को सोने के लिए घर आता और सारे सारे दिन अपनी चाची के घर ही रहता था| माधुरी ने उस घर में आकर जैसे सब कुछ अपने प्यार से और अच्छे स्वभाव से सब कुछ संभाल लिया था| गार्गी भी धीरे धीरे अपनी नयी माँ से हिल-मिल गयी थी..हालाँकि वो माधुरी को मौसी कह कह कर ही पुकारती थी क्यूंकि जब सुचेता माधुरी को मम्मा कहती तो गार्गी के गले में जैसे कुछ अटक जाता था| निशित कुछ कह ही नहीं पाता था..वो अपने खेल में और दोस्तों के बीच गुम रहता| संजय भी साल भर में अपनी नयी पत्नी के भले स्वभाव और सौन्दर्य में अपने दुःख को भुलाने लगा था| परिजनों ने भी इस परिवार में लौटती खुशियों को देख तो भगवान् का शुक्रिया किया | सब कुछ ठीक से चलने लगा था...शायद!
एक रोज़ जब गार्गी स्कूल से वापस आयी तो पाया की घर में ढेर सारे लोग इकठ्ठा हुए हैं और जश्न जैसा माहौल था| कुछ देर में उसे पता पड़ा की माधुरी मौसी कुछ दिनों बाद घर में बेबी लाने वाली है! छोटी सी गार्गी सुन के बहुत बहुत खुश थी! उसे लगा चलो घर में उससे छोटा भी कोई आने वाला है! वो सुचेता दीदी को ढूँढने चली गयी! सुचेता घर की छत पर अनमनी सी बैठी थी..गार्गी ने कहा, "दीदी, आपको पता है, मौसी को बेबी होने वाला है..." सुचेता ने जब कहा की ,"हाँ, तुम्हारे पापा को भी बेबी होने वाला है!!" तो गार्गी के कुछ समझ ना आया की दीदी ऐसा क्यूँ बोल रही है ! उसने कहा, "दीदी, चलो न नीचे, सब लोग देखो कितने खुश हैं! " सुचेता सोच रही थी की वो अपने फ्रेंड्स को क्या कहेगी? इस उम्र में मेरी मम्मा को बेबी? फिर सुचेता ने खुद को समेटा, और गार्गी को प्यार से सहलाती हुई नीचे सभी के संग बातें करने लगी|
सिर्फ दो महीनों में इतना सब कुछ बदल जायेगा, गार्गी को पता न था! माधुरी मौसी को बेटा हुआ था..."सब कहते थे वो मेरा भाई है..लेकिन जब मैंने उसे उठाना चाहा, प्यार करना चाहा तो मौसी ने उसे उठाने ना दिया!" माधुरी एक पढ़ी लिखी और बहुत भले मन की स्त्री थी...वो ऐसा बर्ताव क्यूँ कर रही है? इन दिनों गार्गी और निशित को वो पहले जैसा प्यार क्यूँ नहीं दे रही है,, ये संजय को समझ नहीं आ रहा था! ऐसा दुर्व्यवहार, बुरा भला कहना-करना..सब कुछ जैसे गार्गी और निशित को कहीं भीतर तक तोड़े जा रहा था! परिवार के अन्य सदस्यों ने भी जब इस बात को नोटिस किया तो तय हुआ की गार्गी को बोर्डिंग में देहरादून में रखा जाए और निशित को उसकी चाची के यहाँ भेज दिया जाये! सुचेता जरुर इस बात का विरोध करती रही और आखिर तक कहती रही की "हम सब एक परिवार की तरह क्यूँ नहीं रह सकते? मैं गार्गी का ध्यान रखूंगी!" लेकिन कोई उसकी बात मानने को तैयार नहीं था| घर से बोर्डिंग जाने के लिए जब गार्गी निकली तो सुचेता उससे चिपट कर रोती रही थी | गार्गी के भी दिल में बस यही सवाल आता रहा..क्यूँ? क्यूँ?
आज जब सुचेता गार्गी को मेहंदी लगा रही थी तो पिछले सालों की ये बातें उसके ज़ेहन में घूमने लगी थी| फिर जब सुचेता पानी पीने के लिए उठ के अन्दर गयी तो निशित ने आकर गार्गी का मेहंदी वाला हाथ देखते हुए कहा, "अरे वाह! सुचेता दीदी ने तो बिलकुल नयी तरह की मेहंदी लगायी है तुम्हे गार्गी! जैसे कोई नया एक्सपेरिमेंट हो!"
गार्गी तनिक व्यंग से बोली, "हाँ, मेहंदी तक तो ठीक है भैया, लेकिन भगवान् को भी एक्सपेरिमेंट करने के लिए हमारा ही घर मिला था??"
निशित ने प्यार से उसके बालों को सहलाते हुए कहा, "ऐ छुटकी, याद है न, माँ ने क्या कहा था? ये जीवन एक प्रयोगशाला है और हमें इसमें नित नए एक्सपेरिमेंट्स करने पड़ेंगे..."
सुनकर गार्गी ने अपने भाई को गले लगा लिया और रो पड़ी!
दूर खड़ी सुचेता ने अपनी आँख की किनोर से आंसू पोछा और दोनों को गले लगा लिया...
यह कहानी नव्या पर ६ अगस्त २०१२ को प्रकाशित हुई थी
http://www.nawya.in/hindi-sahitya/item/%E0%A4%8F%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%9F.html
यह कहानी नव्या पर ६ अगस्त २०१२ को प्रकाशित हुई थी
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