Thursday, September 27, 2012

सोशल नेटवर्किंग के ज़माने में स्टुडेंट-टीचर संवाद


  शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में, जयपुर से प्रकाशित डेली न्यूज़ के खुशबू विशेषांक में  ५ सितम्बर २०१२ को प्रकाशित  , मेरा आलेख पढ़ें 


शिक्षक  दिवस ...अपने आप में बेहतरीन स्मृतियाँ  समेट कर लाने का दिन! हम सभी उस रोज़ अपने शिक्षकों के लिए जान भी देने को तैयार रहते थे! मुझे आज भी याद है, शाली दिनों में तो हम सभी उस रोज़ अपने शिक्षकों के लिए कार्यक्रम रखते थे, बहुत अलग सा महसूस होता था| बड़े हुए तो राधाकृष्णन जी के लेखों पर आधारित व्याख्यान आदि देते थे...टीचर के कक्षा में आने से पूर्व ब्लेक बोर्ड पर सुन्दर अक्षरों में  'गुरु गोविन्द दोउ खड़े, काके लागूं पाय,बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताये!' --ऐसा लिखते थे| शिक्षक दिवस अपने आप में हममे उत्स्फूर्त भाव भर देता थालेकिन ये तब की बात थी,वक़्त बहुत बदल गया है..सामने से आते गुरु को झुक कर नमस्ते कहना बहुत ही कम विद्यार्थियों को पसंद आता है| ये परिवर्तन इन दिनों महाविद्यालयों में और प्रोफेशनल संस्थानों में बहुत ज्यादा देखने को मिल रहा हैसमय का फेर है..मैं अब छात्र से शिक्षक हो गयी हूँ|

शिक्षक दिवस नजदीक है और अपने पिछले पंद्रह सालों के अनुभव मुझे प्रेरित कर रहे हैं की मैं शिक्षण प्रणाली से जुड़े नवीनतम आयाम, सोशल नेटवर्किंग साईट पर शिक्षक और छात्र इस विषय पर कुछ लिखूँ!

इस परिवर्तन के दौरान एक  बात जो गौरतलब  है वो है शिक्षक एवं छात्र के मध्य का रिश्ता-- रिश्तों की बुनियाद संवादों पर होती है| पूर्व में जब किसी छात्र को कोई बात करनी हो तो वो शिक्षक से उसके कार्यालयीन समय में जाकर बात करता था..कालांतर में शिक्षक उससे केन्टीन आदि में बैठ कर सलाह -मशविरा कर लेता था| कुछ एक धाडसी किस्म के प्राणी सर आदि लोगों से उनका फोन नंबर ले लिया करते थे बात करने को! बहुत डर होता था सर या टीचर को लेकर! लेकिन अब ऐसा नहीं है, एक तो वो डर नहीं रहा और आदर के पैमाने भी! दुसरे  ये की  वार्तालाप या संवाद की जगह बदल गयी है...उसे 'कार्यालयीन समय' की या 'केन्टीन-ओफ्फिस' में जाने की जरुरत नहीं पड़ती..वो नेट पर आता है, अपना चेट बोक्स खोलता है और तुरंत अपने शिक्षक को 'पिंग' करके बात कर लेता है..जी हाँ जिस तरह अंतर जाल ने समूचे विश्व को नजदीक लाया है, शिक्षक और छात्र भला कैसे इससे अछूते रहते? इन सोशल  नेटवर्किंग साईट ने इन दोनों को एक समान, एक मंच पर एक दूजे के सम्मुख ला खड़ा किया है| जब आप एक ही संस्था से जुड़े होते हैं तो स्वाभाविक है आपकी बातें,विषय,पसंद आदि काफी कुछ समान हो जाती हैं! हर नयी बात की तरह, फेसबुक के भी कभी  बुरे तो कभी अच्छे परिणाम देखने को  मिलते हैं| आइये नज़र डाले इन्हीं  में से कुछ मुख्य परिणामों पर!

नवप्रयोगवाद, नए विचारों से ओत प्रोत नयी शिक्षण प्रणाली में एक शिक्षक की भूमिका में आमूल-चूल परिवर्तन आया है| शिक्षक अब शिक्षा  प्रदान करने वाला न रह कर, फेसिलिटेटर बन गया है| उसका मुख्य काम है छात्र की मदद करना, शिक्षा को ग्राह्य बनाने में ...उसे सरल  बनाने में! इसका कारण ये है की अब इन्फार्मेशन , विषय के बारे में जानकारी तो हर जगह आसानी से मिल जाती है किन्तु उसका उपयोग कैसे हो, ये पता नहीं पड़ता! ऐसे में शिक्षक संग की गयी चर्चाएं बहुत उपयोगी साबित होती हैं|फेसबुक या ब्लॉग इन चर्चाओं को मुखरित कर देते हैं| यह चर्चा, चाहें तो सिर्फ दो लोगों के मध्य न होकर एक पूरे समूह की चर्चा बन जाती है जिससे उस विषय पर गहन मंथन हो जाता है|

नए शिक्षण तंत्र का एक और महत्त्वपूर्ण स्तम्भ है शिक्षक और छात्र के मध्य का व्यवहार! "आदर तो दिल में होना चाहिए, पाँव छूने /(मात्र) से उसका इज़हार नहीं हो जाता "ये बात  माननेवाले  आज कल के छात्र शायद सच ही कह रहे हों! लेकिन एक बात ये भी सच है की अपनी इज्ज़त अपने हाथों में होती है| इन साईट पर जहाँ ये  छात्र बाकायदा शिक्षक की "फ्रेंड्स' लिस्ट में ही विराजमान होते हैं, कई बार उस शिक्षक की व्यक्तिगत बातों से अवगत होकर उसका फायदा कहीं और ले सकते हैं| इस वजह या तो इन छात्रों का चयन सावधानीपूर्वक किया जाए, या फिर छात्रों संग एक अन्य पेज या ब्लॉग पर चर्चा की जाये या फिर व्यक्तिगत जानकारियों को इनके लिए सिमीत किया जाये| सभी साईट में इन दिनों यह सुविधा उपलब्ध है| इससे मित्रता भी बनी रहेगी और कोई कटु अनुभव भी नहीं होगा! कई बार पेरेंट्स का ये कहना होता है की क्या  गरज है की छात्र और शिक्षक मित्र बनें? मिस्साउरी में पिछले वर्ष एक नियम बनाया गया जिसके तहत शिक्षक और छात्र फेसबुक पर मित्र नहीं बन सकते हैं| कारण सामने आया की  कयी बार उनके आपस में अलहदा रिश्ते बन गए थे या की इसकी मदद से शिक्षकों ने छात्रों से अभद्र व्यवहार भी किया था..और संस्थाओं के प्रमुखों एवं पेरेंट्स को इससे घोर आपत्ति थी| इस नियम के अनुसार, शिक्षक यदि चाहे तो अपना एक अलग पेज बनाकर उस पर छात्रों से शैक्षनीक विषयों पे बातचीत कर सकता है जिसे हर ख़ास-ओ-आम पढ़ सके| वहीं दूसरी ओर ऐसे भी पेरेंट्स हैं जिन्हें लगता है की उनके बच्चे बहुत शर्मीले किस्म के हैं इसलिए अपने टीचर्स से फेसबुक के माध्यम से अपनी बात बेझिझक होकर कह पाएंगे|

शिक्षक की एक भूमिका जो अनंत काल से चली आ रही है वो है अपने छात्रों का  सर्वांगीण विकास करने में योगदान देना! ये सभी साईट छात्रों में छुपी रचनात्मकता और सर्जनशीलता को बखूबी बाहर लाती हैं जो शायद कक्षा मैं बैठे बैठे पता न पड़े! वो क्या सोचता है, क्या पढता है और उसका ध्येय क्या है आदि बातों को इस मंच के द्वारा बड़ी सरलता से समझा जा सकता है जिसका उपयोग उसे मार्गदर्शन देने में हो सकता है|हमारी संस्था में फोटोग्राफी एक विषय की तरह पढाया जाता है| छात्र अक्सर अपने खींचे हुए फोटो को अपने एल्बम में लगते हैं और हम शिक्षकों को उनकी कलात्मकता का अंदाज़ा इन पेज पर जाकर आसानी से हो जाता है! इसी तरह कुछ छात्रों को पठन-पाठन का शौक होता है तो वे विविध  लेखको और उनकी किताबों की समीक्षा करते हैं जिनमे हम शिक्षक भी शिरकत करते हैं....इस आदान प्रदान में कयी बार मजेदार किस्से, चुटकुले, व्यंग या कक्षा में हुई कोई रोचक/मजेदार घटना का जिक्र भी हो जाता है जिससे वो पढना बड़ा ही मजेदार हो जाता है!

एक और नयी और बहुत अच्छी अध्यापन प्रक्रिया जो बहुतायत में प्रचलित है वो है "अनुभव बाँटना और सीखना "| अध्ययन और अध्यापन ये दोनों ही संग संग चलता है ...अंतएव अंतर जाल पर जहाँ दृश्य-श्राव्य माध्यमों के द्वारा बहुत अच्छे से बातों को, विचारों को प्रस्तुत किया जा सकता है, अनुभवों का आदान प्रदान दोनों ही और से बड़े सघन तरीके से हो पाता हैनए तंत्रज्ञान के चलते, शिक्षकों को भी काफी कुछ छात्रों से सीखने को मिलता है और उम्दा शिक्षक बड़े अच्छे से इनका उपयोग पढ़ाने में ले सकता है| यू ट्यूब की एड्यूकेशन साईट पर हर विषय/विधा पर बेहतरीन विडीयो मिलते हैं, अनेकानेक विदेशी आईवी लीग के महाविद्यालयीन शिक्षकों ने अपने  छात्रों के साथ मिलकर शिक्षण को बहुत दिलचस्प बना दिया है!

चूंकि शिक्षण संस्थाओं में आचरण संहिता का नाम बदल कर अब मार्गदर्शन संहिता हो गया है , नए सामाजिक परिवर्तनों ने रिश्तों को देखने का नज़रिया बदल दिया है तब ऐसे में शिक्षा प्रणाली  भला कैसे पीछे रह सकती है? शिक्षक और छात्र के मध्य के रिश्तों को बहुत सारे आयामों से देखा जा सकता है किन्तु यदि अंतर जाल पर इस रिश्ते को देखें तो ये अपने आप में एक अनूठा रिश्ता है जिसका उद्भव टेक्नोलोजी के कारण हुआ है! हालांकि ये मंच विश्वव्यापी है, किसी दायरे के अधीन नहीं किन्तु शिक्षक चाहे तो इस मंच का बेहतरीन उपयोग कर सकता है

मेरा पिछले चार-पांच साल का अनुभव यही बताता है की इस मंच के कारण मैं अपने छात्रों से और अच्छे तरह से जुड़ पायी हूँ..न केवल शिक्षक के रूप में वरन इंसानी तौर पे भी! कई छात्र जीवन में आगे बढ़ गए हैं लेकिन जब भी वक़्त मिलता है, मुझसे बात करते हैं...अपनी उपलब्धियों को बताते हैं, अपनी दिक्कतों को साँझा कर मुझसे राय लेते हैं....इस वक़्त वो छात्र नहीं, सही मायने में दोस्त बन जाते हैं! दो माह पूर्व एक छात्रा ने रात ग्यारह बजे मुझे पिंग किया| वो अपना इंटर्नशिप कर रही है ये मैं जानती थी...उसने बताया की उसे रात को देर तक ओफ्फिस में काम करना पड़ता है और इस वजह से उसके पाल्य उसे ये कोर्स ही छोड़ने को कह रहे हैं! वो छात्रा बड़ी विचलित थी...मैंने उसे तक़रीबन आधे घंटे तक बात करके समझाया,पाल्य को कैसे समझाना चाहिए ये बताया और उसके मन को शांत किया! ऐसे मेरे साथ कई बार होता है और मुझे लगता है की चूंकि ये माध्यम एक गैर-मौखिक है , इन बच्चों  को अपनी बात कहने में आसानी होती है|अभी कल ही मेरे संस्थान की एक पूर्व छात्रा ने मेसेज कर पूछा की यदि उसे पी.एच.ड़ी. करनी हो तो क्या कुछ करना होगा? मैंने उसे इस बारे में मार्गदर्शन दिया| कई दफा अन्य संस्थाओं के भी छात्र मुझसे जानकारी मांगते हैं| इन सभी में सबसे बड़ी बात जो मेरे साथ हुई है वो है मेरे और मेरे छात्रों के मध्य एक बहुत ही सुन्दर और मित्रवत माहौल का पनपना! 

और फिर क्या हम सभी एक तरह से एक ही वक्त में शिक्षक और छात्र नहीं हैं? शिक्षकों को चाहिए की वे इस मंच का उपयोग और प्रयोग जरुर करे क्यूंकि छात्रों संग , उनकी ही भाषा और शैली में संवाद स्थापित करने का ये एक बेहतरीन माध्यम है!!


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