Thursday, September 27, 2012

सेमल के पेड़ पर अटकी रात

कल रात तलक ,
सियाह से आसमान पे
एक नाम लिखा रह  गया था
दिल के आईने में किसी का प्यार,
रुसवाइयों के मंजर दिखा गया था!

लेकिन आज की शब्
बड़ी खुबसूरत है...

तुमने तो ,
सोलह कलाओं से सज्ज चाँद की तरह,
कह दिया--
सब कुछ!!
मूँद कर अपनी पलकों को...
मैं, लेकिन
अब क्या कहूँ आगे?
सुनो
आज--
ये जो रात है,
ये पिछले आँगन में
सेमल के पेड़ पर अटक गयी है
और
ये मदमस्त 
चाँद है की
 देख रहा है-- 
 टुकुर टुकुर
मेरी  ही ओर 

और,
 मैंने
आज,
बहुत सालों बाद,
फिर एक बार 
खिड़की के पल्ले,
खोल दिए हैं! 

सुनो
आज--
ये जो रात है ना,
सेमल के पेड़ पर अटक गयी है!!

छायाचित्र : गूगल से साभार 
'नव्या' पर मार्च २०१२ में प्रकाशित : 
http://www.nawya.in/hindi-sahitya/item/%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%B2-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%BC-%E0%A4%AA%E0%A4%B0-%E0%A4%85%E0%A4%9F%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4.html

1 comment:

varsha said...

सुनो,
आज--
ये जो रात है ना,
सेमल के पेड़ पर अटक गयी है