पार्वती-पुत्र
जब मिटटी से बन कर आया,
माँ की रक्षा हेतु,
पिता से भी युद्ध किया!
सृष्टि के समस्त गुणों से संपन्न
जन-जन के दुखों को दूर किया!
हर घर-घर में,
मिटटी से बन कर था आया,
हम सब के संग संग
सारे सुख दुःख था जिया!
पूड़ी-कचौड़ी, हलवा-खीर,
श्रीखंड-पूरण पोली सब खाया!
बच्चों संग खेला,बड़ों के आँसू पोंछे,
हमारे प्रेम में जो है नहाया!
रहा पूरे दस दिन जैसा हमने रखा..
बदले में साल भर का इन्तेजाम करता गया..
जाते हुए याद दिलाया, है सब कुछ नश्वर, मिट जाना है...
मिटटी का पुतला , मिटटी में मिल गया!
~~स्वाति-मृगी~~
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