Thursday, September 27, 2012

बीहड़ और प्रेम..



तुम कहते हो की 
मैं तुम्हारे जीवन की 


सबसे अनमोल नेमत हूँ!
और ये भी की
तुम्हारे जीवन में सिवा अँधेरे के
कुछ नहीं है
इसलिए तुम्हें भूल जाऊं--

एक दफ़ा देखो तो
इस चेहरे में तुम्हें 
मोहब्बत की लौ दिखेगी!
ये दीवानगी नहीं 
ये सिर्फ रस्म-ओ-उल्फत की बातें भी नहीं!

बहुत पाकीज़ा चाहतों के सिलसिले
अक्सर 
कहाँ पूरे होते हैं?
सवालों के दायरे में सिमटे तुम...
रूह की क्या कैफियत माँगते हो?

मुझे नहीं मालूम की तुम कैसे दिखते हो
मैंने अब तक तुम्हे छुआ ही कहाँ?
वो श्यामल आँखें 
अब तलक,
नज़रबंद हुई ही कहाँ?

मुझे तो तुम्हारी आवाज़ का उतार चढ़ाव भी नहीं मालूम!
जब तुम मेरा नाम पुकारोगे,
नहीं जानती वो सिहरन कैसी होगी !!

लेकिन बस इतना जानती हूँ
की 
इक रोज़ 
हम दोनों के दरमियां
ख़त्म होंगी ये दूरियां 
जब, 
चाय की प्यालियों में
ढूँढेंगे हम जीवन के कुँहासे को!
जब,
कोयल गायेगी गीत मधुर 
और खेतों में सरसों लहलहाएगी!
तब ,
मैं धानी चुनर ओढ़े,
लाल चूड़ीयाँ पहने,
तुमसे जरुर मिलूँगी!!

क्योंकि,
ज़िन्दगी चाहे 
अँधेरी हो,
भयावह हो,
बीहड़ सी हो.....
प्रेम स्नेह और तपस्या ही 
उसकी असली नेमत है!
और मैं तुम तक
तुम्हारी नेमत जरुर पहुँचाऊँगी


~~स्वाति-मृगी~~

नव्या में २६ ऑगस्ट २०१२ को प्रकाशित : 
http://www.nawya.in/hindi-sahitya/item/%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%B9%E0%A4%A1%E0%A4%BC-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE.html



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