Thursday, September 27, 2012

मिट्टी सा तन, सौंधा हुआ जाता है









तेरी बाँहों में शमा सी पिघलती मैं
और तू सीने तक मिश्री सा घुला जाता है

तेरा कानों को हौले से कुतरना
मुझे हर पल दीवाना बनाया  जाता है

तेरी महक लेकर रात अभी-अभी सोयी है
कलियों पर कोई हरसिंगार बिखेर जाता है 

मेरे अधरों पर किसी  गीत सा लरज़ता
तेरी गर्म साँसों का निशाँ हुआ जाता है

एक दर्द भरी  गुदगुदी   और आँखों में नमी सी
आज मिट्टी सा तन यूँ  सौंधा हुआ जाता है।

छायाचित्र : गूगल से साभार 

'नव्या' पर मार्च २०१२ में प्रकाशित 

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